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Showing posts from April, 2020

106-खुशी के पीछे मत भागो जो है, जीवन का आनंद लो

         गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वह दुनिया के सबसे दुर्भाग्यशाली लोगों में से एक था। पूरा गाँव उससे थक गया था; वह हमेशा उदास रहता था, वह लगातार शिकायत करता था और हमेशा बुरे मूड में रहता था।            वह जितना अधिक समय तक जीवित रहता था, वह उतना ही अधिक पित्त बनता जा रहा था और उतने ही जहरीले उसके शब्द थे। लोग उससे बचते थे, क्योंकि उसका दुर्भाग्य संक्रामक हो गया था। यह भी अस्वाभाविक था और उसके बगल में खुश होना अपमानजनक था।           उन्होंने दूसरों में नाखुशी की भावना पैदा की। लेकिन एक दिन, जब वह अस्सी साल का हो गया, तो एक अविश्वसनीय बात हुई। तुरंत हर कोई अफवाह सुनने लगा             “एक बूढ़ा आदमी आज खुश है, वह किसी भी चीज के बारे में शिकायत नहीं करता है, मुस्कुराता है, और यहां तक ​​कि उसका चेहरा भी ताजा हो जाता है।” पूरा गाँव इकट्ठा हो गया। बूढ़े आदमी से पूछा गया: ग्रामीण: आपको क्या हुआ?          “कुछ खास नहीं। अस्सी साल मैं खुशी का पीछा कर रहा...

105-गुब्बारे वाला

               एक आदमी गुब्बारे बेच कर जीवन-यापन करता था.  वह गाँव के आस-पास लगने वाली हाटों में             जाता और गुब्बारे बेचता . बच्चों को लुभाने के लिए वह तरह-तरह के गुब्बारे रखता …लाल, पीले ,हरे, नीले…. और जब कभी उसे लगता की बिक्री कम हो रही है वह झट से एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता, जिसे उड़ता देखकर बच्चे खुश हो जाते और गुब्बारे खरीदने के लिए पहुँच जाते.             इसी तरह तरह एक दिन वह हाट में गुब्बारे बेच रहा था और बिक्री बढाने के लिए बीच-बीच में गुब्बारे उड़ा रहा था. पास ही खड़ा एक छोटा बच्चा ये सब बड़ी जिज्ञासा के साथ देख रहा था . इस बार जैसे ही गुब्बारे वाले ने एक सफ़ेद गुब्बारा उड़ाया वह तुरंत उसके पास पहुंचा और मासूमियत से बोला, ” अगर आप ये काल वाला गुब्बारा छोड़ेंगे…तो क्या वो भी ऊपर जाएगा ?”              गुब्बारा वाले ने थोड़े अचरज के साथ उसे देखा और बोला, ” हाँ  बिलकुल जाएगा.  बेटे ! गुब्बारे का ऊपर जाना  इस बात पर ...

104-सपनों की लाठी

          एक गांव में एक लड़का रहा करता था जिसका नाम शिव था, जो की पढ़ने लिखने में बेहद होशियार था और लगभग सभी परीक्षाओं में अपनी कक्षा में प्रथम आया करता था। उसके माता-पिता एवं उसके सभी गांव वासी उससे काफी अपेक्षाएं रखा करते थे और कहा करते थे कि वह अपनी जिंदगी में कुछ ना कुछ करके जरूर दिखाएगा एवं उसे अपने आप से भी काफी अपेक्षाएं थी।           उसका लक्ष्य था कि वह एक बेहद ही प्रसिद्ध लेखक बने. वह अभी मात्र 18 साल का ही था लेकिन उसने लगभग 5 से 6 किताबें अपने द्वारा लिख चुका था।            शिव एक गरीब परिवार से संबंध रखता था इसलिए उसके माता – पिता उसके लेखक बनने से बिल्कुल भी पसंद नहीं थे और वह चाहते थे कि उनका पुत्र भी सरकारी नौकरी करें जिससे उन्हें गांव एवं समाज में इज्जत मिले और इसी बात को लेकर वे शिव पर बहुत ज्यादा दबाव बनाया करते थे कि वह लेखक ना बन कर पढ़ लिख कर एक अच्छी सी नौकरी करें। इसी दबाव के चलते शिव का ध्यान अपने लक्ष्य से हट गया और वह पढ़ने लिखने में भी अपना ध्यान नहीं लगा पाया.     ...

103-विद्या से बुद्धि बडी होती है

विद्या बड़ी या बुद्धि          किसी ब्राह्मण के चार पुत्र थे । उनमें परस्पर गहरी मित्रता थी । चारों में से तीन शास्त्रों में पारंगत थे, लेकिन उनमें बुद्धि का अभाव था। चौथे ने शास्त्रों का अध्ययन तो नहीं किया था , लेकिन वह था बड़ा बुद्धिमान।           एक बार चारों भाइयों ने परदेश जाकर अपनी अपनी विद्या के प्रभाव से धन अर्जित करने का विचार किया। चारों पूर्व के देश की ओर चल पड़े।          रास्ते में सबसे बड़े भाई ने कहा - "हमारा चौथा भाई तो निरा अनपढ़ है। राजा सदा विद्वान व्यक्ति का ही सत्कार करते हैं। केवल बुद्धि से तो कुछ मिलता नहीं। विद्या के बल पर हम जो धन कमाएँगे, उसमें से इसे कुछ नहीं देंगे।          अच्छा तो यही है कि यह घर वापस चला जाए।" दूसरे भाई का विचार भी यही था। किंतु तीसरे भाई ने उनका विरोध किया। वह बोला - "हम बचपन से एक साथ रहे हैं, इसलिए इसको अकेले छोड़ना उचित नहीं है। हम अपनी कमाई का थोड़ा - थोड़ा हिस्सा इसे भी दे दिया करेंगे।" अतः चौथा भाई भी उनके साथ लगा रहा।. ...

102- चोट का फर्क

                                                                             "एक सुनार था, उसकी दुकान से मिली हुई एक लोहार की दुकान थी।सुनार जब काम करता तो उसकी दुकान से बहुत धीमी आवाज़ आती, किन्तु जब लोहार काम करता तो उसकी दुकान से कानों को फाड़ देने वाली आवाज़ सुनाई देती।            एक दिन एक सोने का कण छिटक कर लोहार की दुकान में आ गिरा।* *वहाँ उसकी भेंट लोहार के एक कण के साथ हुई।        सोने के कण ने लोहे के कण से पूछा- भाई हम दोनों का दुख एक समान है, हम दोनों को ही एक समान आग में तपाया जाता है और समान रूप ये हथौड़े की चोट सहनी पड़ती है। मैं ये सब यातना चुपचाप सहता हूँ, पर तुम बहुत चिल्लाते हो, क्यों?          लोहे के कण ने मन भारी करते हुऐ कहा- तुम्हारा कहना सही है, किन्तु तुम पर चोट करने वाला हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई ...

101-मन की शाँति

         एक राजा था जिसे पेटिंग्स से बहुत प्यार था। एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी उसे एक ऐसी पेंटिंग बना कर देगा जो शांति को दर्शाती हो तो वह उसे मुंह माँगा इनाम देगा।           फैसले के दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार इनाम जीतने की लालच में अपनी-अपनी पेंटिंग्स लेकर राजा के महल पहुंचे।            ™राजा ने एक-एक करके सभी पेंटिंग्स देखीं और उनमें से दो को अलग रखवा दिया।अब इन्ही दोनों में से एक को इनाम के लिए चुना जाना था।             पहली पेंटिंग एक अति सुन्दर शांत झील की थी। उस झील का पानी इतना साफ़ था कि उसके अन्दर की सतह तक नज़र आ रही थी और उसके आस-पास मौजूद हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे।           जो कोई भी इस पेटिंग को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छी पेंटिंग हो ही नहीं सकती।          दूसरी पेंटिंग में...

100-अच्छी शिक्षा

ब्रिटेन के स्कॉटलैंड में फ्लेमिंग नाम का एक गरीब किसान था।             एक दिन वह अपने खेत पर काम कर रहा था। अचानक पास में से किसी के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी। किसान ने अपना साजो सामान व औजार फेंका और तेजी से आवाज की तरफ लपका।             आवाज की दिशा में जाने पर उसने देखा कि एक बच्चा दलदल में डूब रहा था। वह बालक कमर तक कीचड़ में फंसा हुआ बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहा था। वह डर के मारे बुरी तरह कांप पर रहा था और चिल्ला रहा था।              किसान ने आनन-फानन में लंबी टहनी ढूंढी, और अपनी जान पर खेलकर उस टहनी के सहारे बच्चे को बाहर निकाला।               अगले दिन उस किसान की छोटी सी झोपड़ी के सामने एक शानदार गाड़ी आकर खड़ी हुई।  उसमें से कीमती वस्त्र पहने हुए एक सज्जन उतरे। उन्होंने किसान को अपना परिचय देते हुए कहा-  "मैं उस बालक का पिता हूं और मेरा नाम राँडॉल्फ चर्चिल है।"  फिर उस अमीर राँडाल्फ चर्चिल ने कहा कि वह इस एहसान का बदला चुकाने आए...

99-फूटा घडा

           बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता  था। वह रोज़ भोर में उठकर दूर  झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया   करता था। इस काम के लिए वह  अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता  था। जिन्हें वो डंडे में बाँध कर  अपने कंधे पर दोनों ओर लटका  लेता था।             उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा  हुआ था और दूसरा एक दम  सही  था . इस  वजह  से  रोज़  घर  पहुँचते -पहुचते  किसान  के  पास  डेढ़  घड़ा   पानी  ही बच  पाता  था .ऐसा  दो  सालों  से  चल  रहा  था .            सही  घड़े  को  इस  बात  का  घमंड  था  कि  वो  पूरा  का  पूरा  पानी  घर  पहुंचता  है  और  उसके  अन्दर  कोई  कमी  नहीं  है  ,  वहीँ  दूसरी  तरफ  फूटा ...

98-प्रेम और आदर्श संवाद

         एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से बोल फूटे: "कहो राम! सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ?" राम मुस्कुराए: "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मूल्य...?"     "जानते हो राम! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ जब तुम जन्में भी नहीं थे। यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो? कैसे दिखते हो? क्यों आओगे मेरे पास..? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा..." राम ने कहा: "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है।"      "एक बात बताऊँ प्रभु! भक्ति के दो भाव होते हैं। पहला मर्कट भाव, और दूसरा मार्जार भाव। बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है........ ".....पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। मैं तो उस बिल्ली ...

97-आसान तरीका

          मोहन काका अपनी बैल गाड़ी पर अनाज की एक बोरी चढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। बोरी काफी वजनी थी इसलिए उन्हें कुछ दिक्कत हो रही थी ; तभी एक राहगीर उनके पास आया और बोला, ” आप जिस तरीके से बोरी चढ़ा रहे हैं वो गलत है …मेरे पास एक आसान तरीका है ”      यह सुन काका कुछ क्रोधित हो उठे और बोले , ” भाई तुम अपना काम करो , मैं इससे भी भारी बोरी चढ़ा चुका हूँ  ” यानि पहले भी आपने गलत तरीका इस्तेमाल किया होगा। “, राहगीर बोला।          यह सुन काका ने बोरी छोड़ी , अपने हाथ झाड़े और बोले , ” तुम नौजवानो की यही समस्या है , थोड़ा पढ़-लिख लेते हो तो खुद को बहुत होशियार समझने लगते हो…. ये नहीं जानते की हम सालों से यही काम कर रहे हैं …चले आते हो अपनी बुद्धि लगाने। “ राहगीर उनकी बात पर मुस्कुराया , ” आपकी मर्जी , मैं तो आपके भले की बात कर रहा था। ” और ये कहकर राहगीर जाने लगा .        काका को लगा क्यों न उसकी बात सुन ही ली जाए , अगर ठीक हुई तो सही नहीं तो जैसे काम होता आया है वैसे ही होता रहेगा। ” सुनो लड़के ! बताओ तुम कौन सा ...

96-दो कहानियाँ

आज की कहानी         दो ऐसी सत्य कथाऐं जिनको पढ़ने के बाद शायद आप भी अपनी  ज़िंदगी जीने का अंदाज़ बदलना चाहें:- पहली:-         दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बनने के बाद ऐक बार नेल्सन मांडेला अपने सुरक्षा कर्मियों के साथ एक रेस्तरां में खाना खाने गए। सबने अपनी अपनी पसंद का खाना  आर्डर किया और खाना आने का इंतजार करने लगे।  उसी समय मांडेला की सीट के सामने वाली सीट पर एक व्यक्ति अपने खाने का इंतजार कर रहा था। मांडेला ने अपने सुरक्षा कर्मी से कहा कि उसे भी अपनी टेबल पर बुला लो। ऐसा ही हुआ। खाना आने के बाद सभी खाने लगे, वो आदमी भी अपना खाना खाने लगा, पर उसके हाथ खाते हुए कांप रहे थे।           खाना खत्म कर वो आदमी सिर झुका कर रेस्तरां से बाहर निकल गया। उस आदमी के जाने के बाद मंडेला के सुरक्षा अधिकारी ने मंडेला से कहा कि वो व्यक्ति शायद बहुत बीमार था, खाते वख़्त उसके हाथ लगातार कांप रहे थे और वह ख़ुद भी कांप रहा था।            मांडेला ने कहा नहीं ऐसा नही...

95-सबसे ऊँची प्रार्थना

सबसे ऊँची प्रार्थना          एक व्यक्ति जो मृत्यु के करीब था, मृत्यु से पहले अपने बेटे को चाँदी के सिक्कों से भरा थैला देता है और बताता है की "जब भी इस थैले से चाँदी के सिक्के खत्म हो जाएँ तो मैं तुम्हें एक प्रार्थना बताता हूँ, उसे दोहराने से चाँदी के सिक्के फिर से भरने लग जाएँगे । उसने बेटे के कान में चार शब्दों की प्रार्थना कही और वह मर गया । अब बेटा चाँदी के सिक्कों से भरा थैला पाकर आनंदित हो उठा और उसे खर्च करने में लग गया । वह थैला इतना बड़ा था की उसे खर्च करने में कई साल बीत गए, इस बीच वह प्रार्थना भूल गया ।          जब थैला खत्म होने को आया तब उसे याद आया कि "अरे! वह चार शब्दों की प्रार्थना क्या थी ।" उसने बहुत याद किया, उसे याद ही नहीं आया ।अब वह लोगों से पूँछने लगा । पहले पड़ोसी से पूछता है की "ऐसी कोई प्रार्थना तुम जानते हो क्या, जिसमें चार शब्द हैं । पड़ोसी ने कहा, "हाँ, एक चार शब्दों की प्रार्थना मुझे मालूम है, "ईश्वर मेरी मदद करो ।" उसने सुना और उसे लगा की ये वे शब्द नहीं थे, कुछ अलग थे । कुछ सुना होता है तो हमें...

94-नाव का संतुलन

       नाव डूबने के बाद नाविक और पांच-सात कुशल तैराक नदी में तैरकर अपनी-अपनी जान बचाये. उधर नाव, सबको नदी में छोड़.. खुद आगे निकल गई. बचे हुए राजा के दरबार में पेश किये गये - राजा ने नाविक से पूछा- नाव कैसे डूबी! नाव में छेद था क्या? नाविक- नहीं महाराज! नाव बिल्कुल दुरुस्त थी. महाराज- इसका मतलब, तुमने सवारी अधिक बिठाई! नाविक- नहीं महाराज! सवारी नाव की क्षमतानुसार ही थे और न जाने कितनी बार मैंने उससे अधिक सवारी बिठाकर नाव पार लगाई है. राजा- आंधी, तूफान जैसी कोई प्राकृतिक आपदा भी तो नहीं थी! नाविक- मौसम सुहाना तथा नदी भी बिल्कुल शान्त थी महाराज. राजा- मदिरा पान तो नहीं न किया था तुमने. नाविक- नहीं महाराज! आप चाहें तो इन लोगों से पूछ कर संतुष्ट हो सकते हैं यह लोग भी मेरे साथ तैरकर जीवित लौटे हैं. महाराज- फिर, क्या चूक हुई? कैसे हुई इतनी बड़ी दुर्घटना? नाविक- महाराज! नाव हौले-हौले, बिना हिलकोरे लिये नदी में चल रही थी. तभी नाव में बैठे एक आदमी ने नाव के भीतर ही थूक दिया. मैंने पतवार र...

93-जब नारद मुनि बने महाराज

       एक बार नारद जी बड़ी ही दुविधा में सोच-विचार करते हुए भगवान विष्णु के धाम पहुंचे। जहाँ प्रभु शेषनाग शैय्या पर विश्राम अवस्था में विराजमान थे। “प्रभु आपकी माया क्या हैं? मैं जानना चाहता हूं। भू लोक पर प्रत्येक मनुष्य आपकी माया से प्रेरित हो दुःख अथवा सुख भोगता है। लेकिन वास्तव में आपकी माया क्या हैं? मुझे बताएं प्रभु!”, नारद जी ने प्रभु से कहा।            श्री विष्णु भगवान बोले, “नारद! यदि तुम्हें मेरी माया जाननी ही है तो उसके लिए तुम्हें मेरे साथ पृथ्वीलोक चलना होगा। जहां मैं अपनी माया का प्रत्यक्ष प्रमाण तुम्हें दे सकता हूँ।” भगवान विष्णु नारद को ले पहुंचे एक विशाल रेगिस्तान में जहाँ दूर-दूर तक कोई मनुष्य तो क्या जीव-जंतु भी दिखाई नहीं पड़ रहा था। नारद जी विष्णु भगवान के पीछे-पीछे रेगिस्तान की गर्म रेत को पार करते हुए आगे बढ़ते रहे। चलते-चलते नारद जी को मनुष्य की ही भाती गर्मी और भूख प्यास का एहसास होने लगा। तब नारद जी ने कहा – “प्रभु!, चलते-चलते बहुत देर हो गई लेकिन आपकी माया क्या है? यह आपने अभी तक नहीं समझाया।” ...

92-समस्या

          किसान था. वह एक बड़े से खेत में खेती किया करता था. उस खेत के बीचो-बीच पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था और ना जाने कितनी ही बार उससे टकराकर खेती के औजार भी टूट चुके थे. रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह खेती करने पहुंचा पर जो सालों से होता आ रहा था एक वही हुआ , एक बार फिर किसान का हल पत्थर से टकराकर टूट गया.             किसान बिल्कुल क्रोधित हो उठा , और उसने मन ही मन सोचा की आज जो भी हो जाए वह इस चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फ़ेंक देगा.वह तुरंत भागा और गाँव से ४-५ लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस पत्त्थर के पास पहुंचा .             ” मित्रों “, किसान बोला , ” ये देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे जड़ से निकालना है और खेत के बाहर फ़ेंक देना है.”             और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार वार करने लग...

91-सरलता

एक आलसी लेकिन भोलाभाला युवक था आनंद। दिन भर कोई काम नहीं करता बस खाता ही रहता और सोता रहता। घर वालों ने कहा चलो जाओ निकलो घर से, कोई काम धाम करते नहीं हो बस पड़े रहते हो। वह घर से निकल कर यूं ही भटकते हुए एक आश्रम पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक गुरुजी हैं उनके शिष्य कोई काम नहीं करते बस मंदिर की पूजा करते हैं। उसने मन में सोचा यह बढिया है कोई काम धाम नहीं बस पूजा ही तो करना है। गुरुजी के पास जाकर पूछा, क्या मैं यहां रह सकता हूं। गुरुजी बोले हां, हां क्यों नहीं? लेकिन मैं कोई काम नहीं कर सकता हूं गुरुजी।  कोई काम नहीं करना है बस पूजा करनी होगी। आनंद : ठीक है वह तो मैं कर लूंगा ... अब आनंद महाराज आश्रम में रहने लगे। ना कोई काम ना कोई धाम बस सारा दिन खाते रहो और प्रभु मक्ति में भजन गाते रहो। महीना भर हो गया फिर एक दिन आई एकादशी। उसने रसोई में जाकर देखा खाने की कोई तैयारी नहीं थी। उसने गुरुजी से पूछा आज खाना नहीं बनेगा क्या। गुरुजी ने कहा नहीं आज तो एकादशी है...

90-जीवन जीने का नजरिया

जीवन जीने का अपना अपना नजरिया एक अस्पताल के कमरे में दो बुजुर्ग भरती  एक उठकर बैठ सकता था परंतु दूसरा उठ नहीं सकता था जो उठ सकता था, उसके पास एक खिडकी थी वह बाहर खुलती थी वह बुजुर्ग उठकर बैठता और दूसरे बुजुर्ग जो उठ नहीं सकता उसे बाहर के दृश्य का वर्णन करता सडक पर दौडती हुई गाडियां काम के लिये भागते लोग वह पास के पार्क के बारे में बताता कैसे बच्चे खेल रहे हैं कैसे युवा जोडे हाथ में हाथ डालकर बैठे हैं कैसे नौजवान कसरत कर रहे हैं आदि आदि ..... दूसरा बुजुर्ग आँखे बन्द करके अपने बिस्तर पर पडा पडा उन दृश्यों का आनन्द लेता रहता| वह अस्पताल के सभी डॉ., नर्सो से भी बहुत अच्छी बातें करता ऐसे ही कई माह गुजर गये एक दिन सुबह के पाली वाली नर्स आयी तो उसने देखा कि वह बुजुर्ग तो उठा ही नहीं है ऩर्स ने उसे जगाने की कोशिश की तो पता चला वह तो नींद में ही चल बसा था आवश्यक कार्यवाही के बाद दूसरे बुजुर्ग का पडोस खाली हो चुका था वह बहुत दु:खी हुआ खैर, उसने इच्छा जाहिर की कि उसे पडोस के बिस्तर पर शिफ्ट कर दिया ...

89-मित्र की सलाह

          एकधनी किसान था; किन्तु बहुत आलसी था| वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान| अपनी गाय-भैंसों की भी वह खोज-खबर नहीं रखता था| सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था|          उसके आलस और कुप्रबन्ध से उसके घर की व्यवस्था बिगड़ गयी| उसको खेती में हानि होने लगी| गायों के दूध-घी से भी उसे कोई अच्छा लाभ नहीं होता था|          एक दिन दुर्गादास का मित्र हरिश्चंद्र उसके घर आया| हरिश्चंद्र ने दुर्गादास के घर का हाल देखा| उसने यह समझ लिया कि समझाने से आलसी दुर्गादास अपना स्वभाव नहीं छोड़ेगा| इसलिये उसने अपने मित्र दुर्गादास की भलाई करने के लिये उससे कहा- ‘मित्र! तुम्हारी विपत्ति देखकर मुझे बड़ा दुःख हो रहा है| तुम्हारी दरिद्रता को दूर करने का एक सरल उपाय मैं जानता हूँ|’          दुर्गादास- ‘कृपा करके वह उपाय तुम मुझे बता दो| मैं उसे अवश्य करूँगा|’ हरिश्चंद्र- ‘सब पक्षियों के जागने से पहले ही मानसरोवर रहने वाला एक सफेद हंस पृथ्वी पर आता है| वह दो पहर दिन चढ़े लौट जाता ...

88-ईश्वर का न्याय

 बुजुर्ग आदमी बुखार से ठिठुरता और भूखा प्यासा शिव मंदिर के बाहर बैठा था। तभी वहां पर नगर के सेठ अपनी सेठानी के साथ एक बहुत ही लंबी और मंहगी कार से उतरे। उनके पीछे उनके नौकरों की कतार थी। एक नौकर ने फल पकडे़ हुए थे दूसरे नौकर ने फूल पकडे़ थे तीसरे नौकर ने हीरे और जवाहरात के थाल पकडे़ हुए थे। चौथे नौकर ने पंडित जी को दान देने के लिए मलमल के 3 जोडी़ धोती कुरता और पांचवें नौकर ने मिठाईयों के थाल पकडे़ थे। पंडित जी ने उन्हें आता देखा तो दौड़ के उनके स्वागत के लिए बाहर आ गए। बोले आईये आईये सेठ जी, आपके यहां पधारने से तो हम धन्य हो गए। सेठ जी ने नौकरों से कहा जाओ तुम सब अदंर जाके थाल रख दो। हम पूजा पाठ सम्पन्न करने के बाद भगवान शिव को सारी भेंट समर्पित करेंगें। बाहर बैठा बुजुर्ग आदमी ये सब देख रहा था। उसने सेठ जी से कहा - मालिक दो दिनों से भूखा हूंँ,थोडी़ मिठाई और फल मुझे भी दे दो खाने को। सेठ जी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। बुजुर्ग आदमी ने फिर सेठानी से कहा - ओ मेम साहब थोडा़ कुछ खाने को ...

87-गैलरी

पिता जिद कर रहा था कि उसकी चारपाई गैलरी में डाल दी जाये।  बेटा परेशान था। बहू बड़बड़ा रही थी..... कोई बुजुर्गों को अलग कमरा नही देता। हमने दूसरी मंजिल पर कमरा दिया.... सब सुविधाएं हैं, नौकरानी भी दे रखी है। पता नहीं, सत्तर की उम्र में सठिया गए हैं? पिता कमजोर और बीमार हैं....  जिद कर रहे हैं, तो उनकी चारपाई गैलरी में डलवा ही देता हूँ। निकित ने सोचा। पिता की इच्छा की पू्री करना उसका स्वभाव था। अब पिता की चारपाई गैलरी में आ गई थी।  हर समय चारपाई पर पडे रहने वाले पिता अब टहलते टहलते गेट तक पहुंच जाते । कुछ देर लान में टहलते । लान में खेलते नाती - पोतों से बातें करते ,हंसते , बोलते और मुस्कुराते । कभी-कभी बेटे से मनपसंद खाने की चीजें लाने की फरमाईश भी करते । खुद खाते , बहू - बटे और बच्चों को भी खिलाते ....धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य अच्छा होने लगा था। दादा !  मेरी बाल फेंको... गेट में प्रवेश करते हुए निकित ने अपने पाँच वर्षीय बेटे की आवाज सुनी,  तो बेटा अपने बेटे को डांटने लगा......

86-अधिकार का सदुपयोग

       एक हाथी था| वह मर गया तो धर्मराज के यहाँ पहुँचा| धर्मराज ने उससे पूछा- ‘अरे! तुझे इतना बड़ा शरीर दिया, फिर भी तू मनुष्य के वश में हो गया! तेरे एक पैर जितना था मनुष्य, उसके वश में तू हो गया!’ वह हाथी बोला-‘महाराज! यह मनुष्य ऐसा ही है|        बड़े-बड़े इसके वश में हो जाते हैं!’ धर्मराज ने कहा-‘हमारे यहाँ तो अनगिनत आदमी आते हैं!’ हाथी ने जवाब दिया-‘आपके यहाँ मुर्दे आते हैं, जो जीवित आदमी आये तो पता लगे! धर्मराज ने दूतो से कहा-‘अरे! एक जीवित आदमी ले आओ|’ दूतों ने कहा-‘ठीक है’|        दूत घूमते ही रहते थे| गर्मी के दिनों में उन्होंने देखा कि छत के ऊपर एक आदमी सोया हुआ है| दूतों ने उसकी खाट उठा ली और ले चले| उस आदमीं की नींद खुली तो देखा कि क्या बात है! वह कायस्थ था| ग्रन्थ लिखा करता था| ग्रंथो में धर्मराज के दूतों के लक्षण आते हैं| उसने जेब से कागज और कलम निकली| कागज पर कुछ लिखा और जेब में रख लिया| उसने सोचा कि हम कुछ चीं-चपड़ करेंगे तो गिर जायेंगें, हड्डियाँ बिखर जायँगी! वह बेचारा खाट पर पड़ा रहा कि जो होगा, दे...

85-जन्मदिन का उपहार

 सुचित्रा, आज मेरा जन्मदिन है। सचिन ने सुबह ही कहा :- "आज कुछ बनाना नहीं। लंच के लिए हम बाहर चलेंगे। तुम्हारे जन्मदिन पर आज तुम्हें एक अनोखी ट्रीट मिलेगी।" 10 साल हो गए हमारी शादी को। मैं सचिन को बहुत अच्छे से जानती हूँ। जीवन के अनोखे अनुभव देना, दुनिया से अलग कुछ मजेदार करना उसकी आदत में शुमार है। दोनों बच्चे शाम 4 बजे स्कूल से लौटेंगे यानी लंच पर मैं और सचिन ही जाएँगे और बच्चों के आने से पहले लौट भी आएँगे। दोपहर 12 बजे हम घर से निकले। एक नए बने मॉल की पार्किंग में हमारी गाड़ी पहुँची। पार्किंग की लिफ्ट में हम दाखिल हुए और सचिन ने 5 वीं मंजिल का स्विच दबाया।  इस मंजिल पर खाने पीने के ढेरों स्टॉल्स थे लेकिन सचिन मेरा हाथ थामे उन सारे स्टॉल्स के सामने से आगे बढ़ता गया। फाइनली एक बंद द्वार पर हम पहुँचे। द्वार पर एक बोर्ड लगा था, जिसपर लिखा था : “Dialogue in the dark” मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। "अंधेरे में संवाद" ? ये कैसा नाम है, रेस्टॉरेंट का ? द्वार ठेलकर हम अंदर पहुँचे। वो एक मध्यम आकार बिना चेयर टेबल्स वाला कमरा था। रिसेप...