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106-खुशी के पीछे मत भागो जो है, जीवन का आनंद लो

         गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वह दुनिया के सबसे दुर्भाग्यशाली लोगों में से एक था। पूरा गाँव उससे थक गया था; वह हमेशा उदास रहता था, वह लगातार शिकायत करता था और हमेशा बुरे मूड में रहता था।            वह जितना अधिक समय तक जीवित रहता था, वह उतना ही अधिक पित्त बनता जा रहा था और उतने ही जहरीले उसके शब्द थे। लोग उससे बचते थे, क्योंकि उसका दुर्भाग्य संक्रामक हो गया था। यह भी अस्वाभाविक था और उसके बगल में खुश होना अपमानजनक था।           उन्होंने दूसरों में नाखुशी की भावना पैदा की। लेकिन एक दिन, जब वह अस्सी साल का हो गया, तो एक अविश्वसनीय बात हुई। तुरंत हर कोई अफवाह सुनने लगा             “एक बूढ़ा आदमी आज खुश है, वह किसी भी चीज के बारे में शिकायत नहीं करता है, मुस्कुराता है, और यहां तक ​​कि उसका चेहरा भी ताजा हो जाता है।” पूरा गाँव इकट्ठा हो गया। बूढ़े आदमी से पूछा गया: ग्रामीण: आपको क्या हुआ?          “कुछ खास नहीं। अस्सी साल मैं खुशी का पीछा कर रहा...

105-गुब्बारे वाला

               एक आदमी गुब्बारे बेच कर जीवन-यापन करता था.  वह गाँव के आस-पास लगने वाली हाटों में             जाता और गुब्बारे बेचता . बच्चों को लुभाने के लिए वह तरह-तरह के गुब्बारे रखता …लाल, पीले ,हरे, नीले…. और जब कभी उसे लगता की बिक्री कम हो रही है वह झट से एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता, जिसे उड़ता देखकर बच्चे खुश हो जाते और गुब्बारे खरीदने के लिए पहुँच जाते.             इसी तरह तरह एक दिन वह हाट में गुब्बारे बेच रहा था और बिक्री बढाने के लिए बीच-बीच में गुब्बारे उड़ा रहा था. पास ही खड़ा एक छोटा बच्चा ये सब बड़ी जिज्ञासा के साथ देख रहा था . इस बार जैसे ही गुब्बारे वाले ने एक सफ़ेद गुब्बारा उड़ाया वह तुरंत उसके पास पहुंचा और मासूमियत से बोला, ” अगर आप ये काल वाला गुब्बारा छोड़ेंगे…तो क्या वो भी ऊपर जाएगा ?”              गुब्बारा वाले ने थोड़े अचरज के साथ उसे देखा और बोला, ” हाँ  बिलकुल जाएगा.  बेटे ! गुब्बारे का ऊपर जाना  इस बात पर ...

104-सपनों की लाठी

          एक गांव में एक लड़का रहा करता था जिसका नाम शिव था, जो की पढ़ने लिखने में बेहद होशियार था और लगभग सभी परीक्षाओं में अपनी कक्षा में प्रथम आया करता था। उसके माता-पिता एवं उसके सभी गांव वासी उससे काफी अपेक्षाएं रखा करते थे और कहा करते थे कि वह अपनी जिंदगी में कुछ ना कुछ करके जरूर दिखाएगा एवं उसे अपने आप से भी काफी अपेक्षाएं थी।           उसका लक्ष्य था कि वह एक बेहद ही प्रसिद्ध लेखक बने. वह अभी मात्र 18 साल का ही था लेकिन उसने लगभग 5 से 6 किताबें अपने द्वारा लिख चुका था।            शिव एक गरीब परिवार से संबंध रखता था इसलिए उसके माता – पिता उसके लेखक बनने से बिल्कुल भी पसंद नहीं थे और वह चाहते थे कि उनका पुत्र भी सरकारी नौकरी करें जिससे उन्हें गांव एवं समाज में इज्जत मिले और इसी बात को लेकर वे शिव पर बहुत ज्यादा दबाव बनाया करते थे कि वह लेखक ना बन कर पढ़ लिख कर एक अच्छी सी नौकरी करें। इसी दबाव के चलते शिव का ध्यान अपने लक्ष्य से हट गया और वह पढ़ने लिखने में भी अपना ध्यान नहीं लगा पाया.     ...

103-विद्या से बुद्धि बडी होती है

विद्या बड़ी या बुद्धि          किसी ब्राह्मण के चार पुत्र थे । उनमें परस्पर गहरी मित्रता थी । चारों में से तीन शास्त्रों में पारंगत थे, लेकिन उनमें बुद्धि का अभाव था। चौथे ने शास्त्रों का अध्ययन तो नहीं किया था , लेकिन वह था बड़ा बुद्धिमान।           एक बार चारों भाइयों ने परदेश जाकर अपनी अपनी विद्या के प्रभाव से धन अर्जित करने का विचार किया। चारों पूर्व के देश की ओर चल पड़े।          रास्ते में सबसे बड़े भाई ने कहा - "हमारा चौथा भाई तो निरा अनपढ़ है। राजा सदा विद्वान व्यक्ति का ही सत्कार करते हैं। केवल बुद्धि से तो कुछ मिलता नहीं। विद्या के बल पर हम जो धन कमाएँगे, उसमें से इसे कुछ नहीं देंगे।          अच्छा तो यही है कि यह घर वापस चला जाए।" दूसरे भाई का विचार भी यही था। किंतु तीसरे भाई ने उनका विरोध किया। वह बोला - "हम बचपन से एक साथ रहे हैं, इसलिए इसको अकेले छोड़ना उचित नहीं है। हम अपनी कमाई का थोड़ा - थोड़ा हिस्सा इसे भी दे दिया करेंगे।" अतः चौथा भाई भी उनके साथ लगा रहा।. ...

102- चोट का फर्क

                                                                             "एक सुनार था, उसकी दुकान से मिली हुई एक लोहार की दुकान थी।सुनार जब काम करता तो उसकी दुकान से बहुत धीमी आवाज़ आती, किन्तु जब लोहार काम करता तो उसकी दुकान से कानों को फाड़ देने वाली आवाज़ सुनाई देती।            एक दिन एक सोने का कण छिटक कर लोहार की दुकान में आ गिरा।* *वहाँ उसकी भेंट लोहार के एक कण के साथ हुई।        सोने के कण ने लोहे के कण से पूछा- भाई हम दोनों का दुख एक समान है, हम दोनों को ही एक समान आग में तपाया जाता है और समान रूप ये हथौड़े की चोट सहनी पड़ती है। मैं ये सब यातना चुपचाप सहता हूँ, पर तुम बहुत चिल्लाते हो, क्यों?          लोहे के कण ने मन भारी करते हुऐ कहा- तुम्हारा कहना सही है, किन्तु तुम पर चोट करने वाला हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई ...

101-मन की शाँति

         एक राजा था जिसे पेटिंग्स से बहुत प्यार था। एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी उसे एक ऐसी पेंटिंग बना कर देगा जो शांति को दर्शाती हो तो वह उसे मुंह माँगा इनाम देगा।           फैसले के दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार इनाम जीतने की लालच में अपनी-अपनी पेंटिंग्स लेकर राजा के महल पहुंचे।            ™राजा ने एक-एक करके सभी पेंटिंग्स देखीं और उनमें से दो को अलग रखवा दिया।अब इन्ही दोनों में से एक को इनाम के लिए चुना जाना था।             पहली पेंटिंग एक अति सुन्दर शांत झील की थी। उस झील का पानी इतना साफ़ था कि उसके अन्दर की सतह तक नज़र आ रही थी और उसके आस-पास मौजूद हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे।           जो कोई भी इस पेटिंग को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छी पेंटिंग हो ही नहीं सकती।          दूसरी पेंटिंग में...

100-अच्छी शिक्षा

ब्रिटेन के स्कॉटलैंड में फ्लेमिंग नाम का एक गरीब किसान था।             एक दिन वह अपने खेत पर काम कर रहा था। अचानक पास में से किसी के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी। किसान ने अपना साजो सामान व औजार फेंका और तेजी से आवाज की तरफ लपका।             आवाज की दिशा में जाने पर उसने देखा कि एक बच्चा दलदल में डूब रहा था। वह बालक कमर तक कीचड़ में फंसा हुआ बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहा था। वह डर के मारे बुरी तरह कांप पर रहा था और चिल्ला रहा था।              किसान ने आनन-फानन में लंबी टहनी ढूंढी, और अपनी जान पर खेलकर उस टहनी के सहारे बच्चे को बाहर निकाला।               अगले दिन उस किसान की छोटी सी झोपड़ी के सामने एक शानदार गाड़ी आकर खड़ी हुई।  उसमें से कीमती वस्त्र पहने हुए एक सज्जन उतरे। उन्होंने किसान को अपना परिचय देते हुए कहा-  "मैं उस बालक का पिता हूं और मेरा नाम राँडॉल्फ चर्चिल है।"  फिर उस अमीर राँडाल्फ चर्चिल ने कहा कि वह इस एहसान का बदला चुकाने आए...