107-बच्चे की सीख

           Bएक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब गाड़ी रुकी तो एक लड़का पानी बेचता हुआ निकला।ट्रेन में बैठे एक सेठ ने उसे आवाज दी,ऐ लड़के इधर आ।लड़का दौड़कर आया।उसने पानी का गिलास भरकर सेठ की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा,कितने पैसे में?लड़के ने कहा - पच्चीस पैसे।सेठ ने उससे कहा कि पंदह पैसे में देगा क्या?
           यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ आगे बढ़ गया।उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे,जिन्होंने यह नजारा देखा था कि लड़का मुस्कराय मौन रहा।जरूर कोई रहस्य उसके मन में होगा।महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के केपीछे- पीछे गए।बोले : ऐ लड़के ठहर जरा, यह तो बता तू हंसा क्यों?
            वह लड़का बोला,महाराज, मुझे हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास तो लगी ही नहीं थी। वे तो केवल पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे।
महात्मा ने पूछा -लड़के, तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठजी को प्यास लगी ही नहीं थी।
          लड़के ने जवाब दिया -महाराज, जिसे वाकई प्यास लगी हो वह कभी रेट नहीं पूछता।वह तो गिलास लेकर पहले पानी पीता है।फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं?पहले कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास लगी ही नहीं है।
         वास्तव में जिन्हें ईश्वर और जीवन मेंकुछ पाने की तमन्ना होती है, वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते।पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती,वे ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं। वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते.अगर भगवान नहीं हे तो उसका ज़िक्र क्यो?और अगर भगवान हे तो फिर फिक्र क्यों ???


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