118-अधर्म का दुष्परिणाँम कब


                एक गांव में एक परचून की दुकान करता था, उसके सामने ही एक हलवाई की दुकान भी थी दोनों की दुकान आमने-सामने थी इन दोनों में परचुनी तो ईमानदारी से धर्म पूर्वक सौदा बेचता था और हलवाई दूध में पानी मिलाकर बेईमानी और अधर्म पूर्वक व्यवहार करता था। 

             थोड़े ही दिनों में हलवाई मालदार हो गया और परचुनी गरीब ही बना रहा, परचुनी इस विषय में पंडितों से प्रश्न किया करता कि धन कैसे होता है, इसका यह उत्तर कि धर्म से ही धन होता है उसके समझ में नहीं आता था क्योंकि उसका पड़ोसी हलवाई तो अधर्म करके ही मालदार हुवा था।

             एक दिन एक विरक्त महात्मा आए। उनसे भी परचुनी ने यही प्रश्न किया महात्मा चुप हो गए और वहीं रहने लगे कुछ दिन बाद महात्मा बोले तुम गंगा स्नान को चलो, वहां पहुंचकर महात्मा ने गंगा किनारे एक गड्ढा आदमी की ऊंचाई से गहरा तैयार कराया और परचुनी से उसके भीतर खड़े होने को कहा उसके खड़े हो जाने पर वह दूसरे आदमियों द्वारा उस गड्ढे में जल डलवाने लगे सौ दो सौ घड़ा जल डालने पर परचूनी की गर्दन तक जल आगया।

           इस परचुनी बोला कि अब यदि दो-चार घडे और डलवाए तो मैं डूब कर मर जाऊंगा महात्मा बोले यदि सौ घड़ा पानी डालने पर तू नहीं मारा तो दो चार घडे डलवाने से कैसे मर जाएगा। 

            फिर उपदेश किया देखो इस जल की ही तरह जब तक पाप मनुष्य के कंठ तक रहता है तब तक पता नहीं चलता, जब आगे बढ़ता है और दम घुटने लगता है तभी उसका दुष्परिणाम जान पड़ता है, इसी प्रकार जब अधर्म उपार्जित संपत्ति को चोर चुरा लेते हैं अग्नि भस्म कर देती है अथवा रोग या मुकदमा बाजी उसे समाप्त कर देती है तभी उसका दुष्परिणाम मालूम होता है वास्तव में तो धर्म से ही धन की रक्षा होती है।

 

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