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119-घमंडी की सिर नीची

           नारियल के पेड़ बड़े ही ऊँचे होते हैं और देखने में बहुत सुंदर होते हैं | एक बार एक नदी के किनारे नारियल का पेड़ लगा हुआ था | उस पर लगे नारियल को अपने पेड़ के सुंदर होने पर बहुत गर्व था | सबसे ऊँचाई पर बैठने का भी उसे बहुत मान था | इस कारण घमंड में चूर नारियल हमेशा ही नदी के पत्थर को तुच्छ पड़ा हुआ कहकर उसका अपमान करता रहता |             एक बार, एक शिल्प कार उस पत्थर को लेकर बैठ गया और उसे तराशने के लिए उस पर तरह – तरह से प्रहार करने लगा | यह देख नारियल को और अधिक आनंद आ गया उसने कहा – ऐ पत्थर ! तेरी भी क्या जिन्दगी हैं पहले उस नदी में पड़ा रहकर इधर- उधर टकराया करता था और बाहर आने पर मनुष्य के पैरों तले रौंदा जाता था और आज तो हद ही हो गई | ये शिल्पी तुझे हर तरफ से चोट मार रहा हैं और तू पड़ा देख रहा हैं | अरे ! अपमान की भी सीमा होती हैं | कैसी तुच्छ जिन्दगी जी रहा हैं | मुझे देख कितने शान से इस ऊँचे वृक्ष पर बैठता हूँ | पत्थर ने उसकी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया | नारियल रोज इसी तरह पत्थर को अपमानित करता रहता |     ...

118-अधर्म का दुष्परिणाँम कब

                एक गांव में एक परचून की दुकान करता था, उसके सामने ही एक हलवाई की दुकान भी थी दोनों की दुकान आमने-सामने थी इन दोनों में परचुनी तो ईमानदारी से धर्म पूर्वक सौदा बेचता था और हलवाई दूध में पानी मिलाकर बेईमानी और अधर्म पूर्वक व्यवहार करता था।               थोड़े ही दिनों में हलवाई मालदार हो गया और परचुनी गरीब ही बना रहा, परचुनी इस विषय में पंडितों से प्रश्न किया करता कि धन कैसे होता है, इसका यह उत्तर कि धर्म से ही धन होता है उसके समझ में नहीं आता था क्योंकि उसका पड़ोसी हलवाई तो अधर्म करके ही मालदार हुवा था।              एक दिन एक विरक्त महात्मा आए। उनसे भी परचुनी ने यही प्रश्न किया महात्मा चुप हो गए और वहीं रहने लगे कुछ दिन बाद महात्मा बोले तुम गंगा स्नान को चलो, वहां पहुंचकर महात्मा ने गंगा किनारे एक गड्ढा आदमी की ऊंचाई से गहरा तैयार कराया और परचुनी से उसके भीतर खड़े होने को कहा उसके खड़े हो जाने पर वह दूसरे आदमियों द्वारा उस गड्ढे में जल डलवाने लगे सौ दो सौ घड़ा...

117-अनुभव की कंघी

             रामधन नाम का एक पुराना व्यपारी था जो अपनी व्यापारी समझ के कारण दोनों हाथो से कमा रहा था | उसको कोई भी टक्कर नहीं दे सकता था | वो दूर-दूर से अनाज लाकर उसे शहर में बेचता था उसे बहुत सा लाभ होता था | वो अपनी इस कामयाबी से बहुत खुश था | इसलिये उसने सोचा व्यापार बढ़ाना चाहिये और उसने पड़ौसी राज्य में जाकर व्यापार करने की सोची |               दुसरे राज्य जाने के रास्ते का मानचित्र देखा गया जिसमे साफ-साफ था कि रास्ते में एक बहुत बड़ा मरुस्थल हैं | खबरों के अनुसार उस स्थान पर कई लुटेरे भी हैं | लेकिन बूढा व्यापारी कई सपने देख चूका था | उस पर दुसरे राज्य में जाकर धन कमाने की इच्छा प्रबल थी | उसने अपने कई किसान साथियों को लेकर प्रस्थान करने की ठान ली | बैलगाड़ियाँ तैयार की और उस पर अनाज लादा |इतना सारा माल था जैसे कोई राजा की शाही सवारी हो |             बू√ढ़े राम धन की टोली में कई लोग थे जिसमे जवान युवक भी थे और वृद्ध अनुभवी लोग,जो बरसो से रामधन के साथ काम कर रहे थे | जवानो के अनुसार अगर इ...

116-प्रेम के बोल

             एक गाँव में एक मजदुर रहा करता था जिसका नाम हरिराम था | उसके परिवार में कोई नहीं था | दिन भर अकेला मेहनत में लगा रहता था | दिल का बहुत ही दयालु और कर्मो का भी बहुत अच्छा था | मजदुर था इसलिए उसे उसका भोजन उसे मजदूरी के बाद ही मिलता था | आगे पीछे कोई ना था इसलिये वो इस आजीविका से संतुष्ट था |             एक बार उसे एक छोटा सा बछड़ा मिल गया | उसने ख़ुशी से उसे पाल लिया उसने सोचा आज तक वो अकेला था अब वो इस बछड़े को अपने बेटे के जैसे पालेगा | हरिराम का दिन उसके बछड़े से ही शुरू होता और उसी पर ख़त्म होता वो रात दिन उसकी सेवा करता और उसी से अपने मन की बात करता | कुछ समय बाद बछड़ा बैल बन गया | उसकी जो सेवा हरिराम ने की थी उससे वो बहुत ही सुंदर और बलशाली बन गया था |             गाँव के सभी लोग हरिराम के बैल की ही बाते किया करते थे | किसानों के गाँव में बैल की भरमार थी पर हरिराम का बैल उन सबसे अलग था | दूर-दूर से लोग उसे देखने आते थे |हर कोई हरिराम के बैल के बारे में बाते कर रहा था |    ...

115-मेहनत का फल

              एक नगर में प्रतिष्ठित व्यापारी रहते थे जिन्हें बहुत समय बाद एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी.उसका नाम चंद्रकांत रखा गया. चंद्रकांत घर में सभी का दुलारा था. अतिकठिनाई एवं लंबे समय इंतजार के बाद संतान का सुख मिलने पर, घर के प्रत्येक व्यक्ति के मन में व्यापारी के पुत्र चंद्रकांत के प्रति विशेष लाड़ प्यार था जिसने चंद्रकांत को बहुत बिगाड़ दिया था. घर में किसी भी बात का अभाव नहीं था. चंद्रकांत की मांग से पहले ही उसकी सभी इच्छाये पूरी कर दी जाती थी. शायद इसी के कारण चंद्रकांत को ना सुनने की आदत नहीं थी और ना ही मेहनत के महत्व का आभास था . चंद्रकांत ने जीवन में कभी अभाव नहीं देखा था इसलिए उसका नजरिया जीवन के प्रति बहुत अलग था और वहीं व्यापारी ने कड़ी मेहनत से अपना व्यापार बनाया था.ढलती उम्र के साथ व्यापारी को अपने कारोबार के प्रति चिंता होने लगी थी.                  व्यापारी को चंद्रकांत के व्यवहार से प्रत्यक्ष था कि उसके पुत्र को मेहनत के फल का महत्व नहीं पता. उसे आभास हो चूका था कि उसके लाड प्यार ने चंद्रका...

114-भगवान का आशीर्वाद

भगवान का आशीर्वाद                 एक बार भगवान राम और लक्ष्मण एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे। उतरते समय उन्होंने अपने-अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए जब वे स्नान करके बाहर निकले तो लक्ष्मण ने देखा की उनकी धनुष की नोक पर रक्त लगा हुआ था! उन्होंने भगवान राम से कहा -" भ्राता ! लगता है कि अनजाने में कोई हिंसा हो गई ।" दोनों ने मिट्टी हटाकर देखा तो पता चला कि वहां एक मेढ़क मरणासन्न पड़ा है               भगवान राम ने करुणावश मेंढक से कहा- "तुमने आवाज क्यों नहीं दी ? कुछ हलचल, छटपटाहट तो करनी थी। हम लोग तुम्हें बचा लेते जब सांप पकड़ता है तब तुम खूब आवाज लगाते हो। धनुष लगा तो क्यों नहीं बोले ? मेंढक बोला - प्रभु! जब सांप पकड़ता है तब मैं 'राम- राम' चिल्लाता हूं एक आशा और विश्वास रहता है, प्रभु अवश्य पुकार सुनेंगे। पर आज देखा कि साक्षात भगवान श्री राम स्वयं धनुष लगा रहे है तो किसे पुकारता? आपके सिवा किसी का नाम याद नहीं आया बस इसे अपना सौभाग्य मानकर चुपचाप सहता रहा।"          कहानी का सार- सच्च...

113-भगवान का आशीर्वाद

          एक बार भगवान राम और लक्ष्मण एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे। उतरते समय उन्होंने अपने-अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए जब वे स्नान करके बाहर निकले तो लक्ष्मण ने देखा की उनकी धनुष की नोक पर रक्त लगा हुआ था! उन्होंने भगवान राम से कहा -" भ्राता ! लगता है कि अनजाने में कोई हिंसा हो गई ।" दोनों ने मिट्टी हटाकर देखा तो पता चला कि वहां एक मेढ़क मरणासन्न पड़ा है           भगवान राम ने करुणावश मेंढक से कहा- "तुमने आवाज क्यों नहीं दी ? कुछ हलचल, छटपटाहट तो करनी थी। हम लोग तुम्हें बचा लेते जब सांप पकड़ता है तब तुम खूब आवाज लगाते हो। धनुष लगा तो क्यों नहीं बोले ? मेंढक बोला - प्रभु! जब सांप पकड़ता है तब मैं 'राम- राम' चिल्लाता हूं एक आशा और विश्वास रहता है, प्रभु अवश्य पुकार सुनेंगे। पर आज देखा कि साक्षात भगवान श्री राम स्वयं धनुष लगा रहे है तो किसे पुकारता? आपके सिवा किसी का नाम याद नहीं आया बस इसे अपना सौभाग्य मानकर चुपचाप सहता रहा।"         कहानी का सार- सच्चे भक्त जीवन के हर क्षण को भगवान का आशीर्वाद मानकर उसे स्वीक...